बुनियादी अनुसंधान की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए परिषद ने वर्ष 2005 से मौलिक और सहयोगात्मक अनुसंधान पर अपनी पहलों में वृद्धि की है। वर्ष 2005 से सीसीआरएच द्वारा शुरू किये गये सहयोगात्मक अध्ययनों का मुख्य उद्देश्य, साक्ष्य आधारित, अंतर-विधा मूल अनुसंधान अध्ययन करना और वैज्ञानिक मानकों के आधार पर होम्योपैथी की प्रभावकारिता /अवधारणाओं को वैधीकृत करना है, जिसके लिए बुनियादी ढांचे/ और विशेषज्ञता की आवश्यकता है, जो परिषद में उपलब्ध नहीं है। इस क्षेत्र में अपने उद्देश्य प्राप्त करने के लिए, परिषद विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों से सहयोग करती है, जिसमें 30 राष्ट्रीय और 03 अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहकार्यता शामिल है। इस क्षेत्र में कुल 33 परियोजनाओं को संपन्न कर लिया गया है और 18 परियोजनाएं अभी चल रही हैं।
परिषद द्वारा पूर्व में (1979 - 2002) के दौरान किये गये कुछ शोध कार्यों में निम्नलिखित शामिल है :
क्र.सं. | सहयोगी संस्थान | अध्ययन शीर्षक |
1. | बनारस हिंदू विश्वविद्यालय | श्वेत चूहों* में अंडाशय, गर्भाशय और सूक्षम न्यूरॉन्स पर प्ल्साटिल्ला (एक होम्योपैथिक दवा) के 1000 और 10,000 पोटेंसी का प्रभाव |
2. | बनारस हिंदू विश्वविद्यालय | प्ल्साटिल्ला दवा के बांझपन प्रतिरोधी प्रभावों का आकृति-ऊतकीय और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण* |
3. | अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान | हेपेटाइटिस-बी वायरस के प्रजनन को नियंत्रित करने में होम्योपैथिक दवाओं का प्रभाव |
4. | नव-चेतना नशामुक्ति केंद्र, वाराणसी | होम्योपैथी से नशे की लत का उपचार- एक प्रयास |
5. | अमला कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र, केरल | ट्यूमर को कम करने में होम्योपैथिक दवाओं की सफलता |
6. | भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) | नैदानिक फाइलेरिया के होम्योपैथिक प्रबंधन में प्लासिबो नियंत्रण के साथ एक स्पष्ट परीक्षण |
| होम्योपैथिक दवाओं के साथ सूक्ष्म फाइलेरिया का परीक्षण |
जीवित, जीवनक्षम फाइलेरिया पर होम्योपैथिक मदर टिंचर के प्रभाव पर इनविट्रो अध्ययन |
फाइलेरिया के तीव्र नैदानिक मामलों के दौरान साइटोकाइन (ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्टर-अल्फा) के निर्धारण पर एक प्रायोगिक अध्ययन |
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तीव्र फाइलेरिया के रोगियों के रक्त के नमूने में कीटाणुओं के बढ़ने का निर्धारण एवं इसका होम्योपैथिक प्रबंधन |
2005 से सेक्शन द्वारा किए गए कार्यों की एक झलक इस प्रकार है
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